उड़ गए हैं जो कबूतर।
मैं उनका ठिकाना बनूँगा।
रोक कर उनको वहीं पे
उनका मैं सहारा बनूँगा।
अगर कोई वजह न मिली तो
मैं ही खुद एक वजह बनूँगा।
रास्ते मे हों चाहे जितने कंकड़ पत्थर
फिर भी मैं उनका एक जरिया बनूँगा।
shayari
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Monday 12 February 2018
कबूतर
कुछ भी
सवालों के इस जहां में
मैं एक सवाल बन गया हूँ।
सोचा था नहीं कभी यह,
मैं एक बहाव बन गया हूँ।
बह रहा हूँ बस मैं
समय के इन थपेड़ो को साथ लेकर
रुक गया जहां कहीं भी तो
समेट लूंगा हर समां खुद में मैं।
फिर बहूँगा एक नए सिरे से
हर एक उमंग को साथ लेकर।
Friday 18 August 2017
कैंची चली है पन्नों में
इस टूटे हुए दिल पर
अब तुम कैंची चलाओगे क्या?
तलवार भी छू न सकी थी जिसे
तुम फूल 💐 से मिटाओगे क्या?
मुस्कान जो थी पहले
बरकरार वो है अब भी
आँसुओं के खारेपन को
महसूस कराओगे अब क्या?
सूजन नहीं थी दिल की पहले
पर अब जख्म भी सूज गया है
रातों को सपने में आके अब
मेरे सपने भी चुरओगे क्या?
क्या , मेरी जिंदगी में तुम
कभी आओगे क्या?
कुछ कहना है।
वक्त ये तुझको बताकर मैंने लिखा था ।
क्या वक्त ये तूने मुझको जता दिया।
जो आईना मैंने खुद देखा न कभी था।
मेरा ही आईना तूने मुझको दिखा दिया।
मुझमें सिमटते सूने पलों को महसूस किया है मैंने।
मेरी हर सांस को अधूरा बना दिया है।
टूटते पलों की जिन चिंगारियों को समेटा था मैंने।
मेरे आसमां को मेरी जमीं पे ला दिया है।
दिल के अंधेरों में चाँद दिखता था जब कभी।
ख्वाव तेरे चेहरे का पढ़ लेता था मैं मुझमें।
मुस्कान तेरी जो चाँद का नूर बन पड़ती है मुझमें।
कागज के पन्ने बन भी अदृश्य नहीं हो पाता हूँ मैं।
वजूद कैसे खो दूँ खुद का मैं।
देखूँ जब भी तुझे खुद को पाता हूँ मैं ।
Monday 14 August 2017
मेरे अल्फ़ाज़ शब्द ही थे!
मेरे हर शब्द मेरे अल्फ़ाज़ ,कहते हैं मुझसे।
पढ़कर तो बता कि क्या लिखा है मुझपर तूने।
मेरी परछाईं तक मुझसे यह कहती है कि
छुपकर तो बता अपने साये से तू।
अगर मेरी सोच मेरे हुस्न से जानी जाए
मेरे नाम से पहचानी जाए , तब
मैं सोच लूंगा कि सोच मेरी नहीं मुझसे है।
आँसूं भी मेरे बिक जाएं जब,
स्वाभाविक न रह कर
समय के तकादे में खुद ही बह जाएं जब।
समझ लूंगा मैं
समय की मार बुरी पड़ी है।
एहसास मेरा जब मुझसे
मैं को पूछे,
मेरा दिल भी जब
मेरे मन को टटोले।
लगने लगेगा तब
अंदर कुछ तो हुआ है,
बिन आवाज़ हर सांस का बंधन
अंतः रण से टूटा हुआ है।
रोकने लगे हर दिल आवाज़ जब,
बंधा हुआ समां भी जब टूट जाये।
अंदर झांक कर भी कुछ न मिले जब मुझको।
समझ जाना कि मेरा मैं मुझसे रूठा हुआ है।
Tuesday 23 August 2016
इश्क़ के पन्नों में
रंग जितना मेरे रंग में मिला दो
बात दो फिर तुम कहो और
इस दो में मुझे तुम शामिल करा दो|
राज ए दिल
समझ न आया हमको कुछ , जिक्र इसका हमने ऐसे कर डाला .